देहरादून उत्तर प्रदेश की भांति अब उत्तराखंड में भी गुलामी के प्रतीक चिह्न हटाने के साथ ही विभिन्न शहरों, स्थानों, सड़कों आदि के ब्रिटिशकालीन नाम बदले जाएंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसके पहले ही संकेत दे दिए हैं। प्रदेश में इस तरह के कदम उठाए जाने से पहले ही विपक्षी पार्टी ने सरकार पर कई सवाल उठाए हैं। हालांकि सरकार ने अपना पक्ष रख कर ऐसे कदम की वकालत की है। यानी कि अब उत्तराखंड में भी उत्तर प्रदेश की भांति नाम परिवर्तन की कवायद शुरू हो रही है।
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने भी ब्रिटिशकालीन नाम बदलने की शुरुआत की थी। अब उत्तराखंड में भी इस दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं। राज्य में लैंसडौन, मसूरी, देहरादून, नैनीताल, रानीखेत समेत विभिन्न शहरों व क्षेत्रों के साथ ही छावनी परिषदों के अंतर्गत सड़कों, स्थानों के नाम ब्रिटिशकालीन हैं, जिनमें अभी तक कोई बदलाव नहीं किया गया है, जबकि इनके पुराने अथवा नए नामकरण की बात समय-समय पर उठती रही है। हाल में ही छावनी परिषद लैंसडौन ने लैंसडौन का नाम बदलने का प्रस्ताव पारित किया है। अंग्रेजी शासनकाल के दौरान लार्ड लैंसडौन भारत में अंग्रेज वायसराय थे और उन्हीं के नाम पर कालोंडांडा का नाम लैंसडौन रखा गया था।छावनी नगर लैंसडौन में अन्य कई स्थानों के नाम ब्रिटिशकालीन हैं। प्रदेश के कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि यह एक अच्छा कदम है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए, न केवल लैंसडौन बल्कि अन्य छावनी नगरों के अलावा मसूरी, देहरादून, नैनीताल में भी सड़कों, संस्थानों व सार्वजनिक स्थलों के ऐसे नामों की भरमार है। अब ऐसे स्थानों, सड़कों व सार्वजनिक स्थलों के नाम बदले जाएंगे। जो भी गुलामी के प्रतीक हैं, उन्हें हटाया जाएगा। यानी, अब ब्रिटिशकालीन नामों से मुक्ति मिलने के साथ ही संबंधित स्थलों के पुराने अथवा नए रखे जाएंगे। इस मामले में कांगस की अलग विचारधारा है कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने कहा कि प्रदेश की जनता को विकास चाहिए युवाओं को रोजगार चाहिए और बहुत से ऐसे प्रतीक हैं बहुत सी ऐसी जगह हैं जो अब उसी नाम से जाने जाते हैं और उसी नाम से विख्यात हैं अगर उनको बदला जाएगा तो वह ठीक नहीं है।