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श्रीनगर : आखर चैरिटेबल ट्रस्ट ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ! UK24X7LIVENEWS

गढ़वाली भाषा -साहित्य के संरक्षण एवं सम्बर्धन हेतु प्रयासरत ‘आखर चैरिटेबल ट्रस्ट’ ने 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर ट्रस्ट के कार्यालय रावत, न्यू डांग में कार्यक्रम आयोजित किया । इस अवसर पर वक्ताओं ने कहा कि -हमारी मातृभाषा ही हमारी पहचान है । मातृभाषा के पक्ष में विचार रखते हुए रचनाकारों /वक़्ताओं ने गढ़वाली भाषा को बढ़ावा देने, नई पीढ़ी को अपनी मातृभाषा से जोड़ने एवं इस भाषा के संरक्षण पर जोर दिया।

आखर ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन एवं कवयित्री अंशी कमल द्वारा गढ़वाली सरस्वती वंदना से हुई। कार्यक्रम में साहित्यकार एवं शिक्षाविद डॉ.अशोक बडोनी कहा कि – गढ़वाली भाषा के जो शब्द प्रचलन से बाहर हो रहे हैं उनको संरक्षित करने की आवश्यकता है। प्रत्येक को अपनी मातृभाषा के विकास व संरक्षण हेतु आगे आना ही होगा।’

ट्रस्ट के उपाध्यक्ष एवं हे. न. ब. ग. विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रो. नागेंद्र रावत ने कहा कि -‘अपनी मातृभाषा के प्रति हमें अपने दायित्वों को समझना होगा।एकल परिवार होने के कारण, दादा -दादी, नाना -नानी आदि के साथ नई पीढ़ी के न रह पाने के कारण भी आज अपनी मातृभाषा के प्रति हम सभी के दायित्व और भी बढ़ गए हैं । इस दिवस को मनाने का कारण यह है कि -कहीं ना कहीं आमजन अपनी दुधबोली से दूर हो रहा है।
ट्रस्ट की कोषाध्यक्ष एवं कवयित्री रेखा चमोली ने कहा कि – ” हमें मातृभाषा बचाने की पहल अपने घर से करनी होगी।हमारी मातृभाषा ही हमारी असली पहचान है । ” योगा तृतीय सेमिस्टर की छात्रा श्वेता पंवार ने कहा कि – ” हमें अपनी मातृभाषा में बात करते हुए शर्म महसूस नहीं होनी चाहिए एवं स्वयं ही बेझिझक होकर अपने से इसकी शुरुआत करनी चाहिए।अपनी मातृभाषा के संरक्षण एवं सम्बर्धन हेतु । ”

कार्यक्रम का संचालन करते हुए ट्रस्ट के अध्यक्ष संदीप रावत ने गढ़वाली भाषा की शब्द सामर्थ्य पर विचार रखे एवं कहा कि – अभिव्यक्ति की एक सशक्त माध्यम गढ़वाली भाषा के संरक्षण एवं सम्बर्धन की जिम्मेदारी हम सभी की बनती है। साथ ही संदीप रावत ने कहा कि – भाषाओं एवं बोलियों पर वैश्विक संकट को देखते हुए यूनेस्को ने वर्ष 2000 से प्रत्येक वर्ष 21फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निर्णय लिया था। मूल रूप में यह दिवस सारे विश्व में भाषा के पहले आंदोलन जो कि ढाका में बांग्ला भाषा के लिए हुआ था उसमें कई लोग शहीद हुए थे, तो उनकी याद में भी तब से यह दिवस मनाया जा रहा है। हम सभी को अपने दैनिक जीवन में इसे व्यवहार में लाना होगा।’
इस अवसर पर कु.कंचन पंवार,अंशी कमल, रेखा चमोली आदि ने अपनी गढ़वाली रचनाएं प्रस्तुत की। कार्यक्रम में संजय रावत,मयंक पंवार, संगीता पंवार आदि भी उपस्थित थे। अंत में ट्रस्ट की मुख्य ट्रस्टी लक्ष्मी रावत ने कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

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