जोशीमठ भू- धसाव को लेकर वैज्ञानिकों की रिपोर्ट को प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक कर दिया है। उत्तराखंड राज्य आपदा ओर से रिपोर्ट को सार्वजनिक करते हुए वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। करीब 718 पन्नों में 8 वैज्ञानिक संस्थाओं की इस रिपोर्ट के अनुसार जमीन में पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने से भू-धसांव हो रहा है।
बताया जा रहा है कि नैनीताल हाईकोर्ट ने भी इस मामले में सख्त रुख अपनाकर सरकार से रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के निर्देश दिए थे। 718 पन्नों की रिपोर्ट में मोरेन क्षेत्र (ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी) में बसे जोशीमठ की जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आई है, जिसके कारण वहां भू-धंसाव हो रहा है। रिपोर्ट में जोशीमठ में भू-धंसाव के कई कारणों का विस्तृत ब्योरा दिया गया है। सरकार ने आठ विभिन्न वैजनिक संस्थाओं को भू-धसाव और जोशीमठ की जड़ में निकल रहें पानी के कारणों को जानने के लिए मैदान में उतारा था। तमाम वैज्ञानिक संस्थानों से बहुत पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार की सौंप दी थी।
जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया। इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है।
इन संस्थानों की रिपोर्ट को किया सार्वजनिक
1-वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने सिस्मोलॉजी भू-भौतिकीय अनवेषण के साथ ही जियोफिजिकल सर्वेक्षण की 33 पेज की रिपोर्ट सौंपी है
2-आईआईटी रुड़की ने जोशीमठ में भू-तकनीकी अध्ययन (जियोटेक्निकल सर्वे) किया है। संस्थान के वैज्ञानिक जोशीमठ के भूगर्भ में मिट्टी और पत्थरों की क्या स्थिति और उसकी भार क्षमता का पता लगाते हुए 120 पेज में अपनी रिपोर्ट सौंपी है
3-एनजीआरआई, हैदराबाद : जियोफिजिकल और जियोटेक्निकल सर्वे का काम किया है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने जोशीमठ में 30 से 50 मीटर गहराई तक का भूगर्भ का मैप तैयार किया है। संस्थान ने 90 पेज में अपनी रिपोर्ट सौंपी है